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उत्तर
2. लेखिका ने नानी की आज़ादी के आंदोलन में किस प्रकार की भागीदारी रही
?
उत्तर
वह प्रत्यक्ष रुप में भले ही आज़ादी की लड़ाई में भाग नहीं ले पाई हों परन्तु अप्रत्यक्ष रुप में सदैव इस लड़ाई में सम्मिलित रहीं और इसका मुख्य उदारहण यही था कि उन्होनें अपनी पुत्री की शादी की ज़िम्मेदारी अपने पति के स्वतंत्रता सेनानी मित्र को दी थी। वह अपना दामाद एक आज़ादी का सिपाही चाहती थीं न कि अंग्रेज़ों की चाटुकारी करने वाले को। उन्हें अंग्रेजों और अंग्रेज़ियत से चिढ़ थी। उनके मन में आज़ादी के लिए एक जुनून था।
3. लेखिका की माँ परंपरा का निर्वाह न करते हुए भी सबके दिलों पर राज करती थी। इस कथन के आलोक में-- (क) लेखिका के माँ के व्यक्तित्व की विशेषताएँ लिखिए। (ख) लेखिका की दादी के घर के महौल का शब्द-चित्र अंकित कीजिए।
उत्तर
(क) लेखिका की माँ बहुत ही नाजुक, सुंदर और स्वतंत्र विचारों की महिला
थीं। उनमें ईमानदारी,निष्पक्षता और सचाई भरी हुई थी।वे अन्य माताओं की तरह कभी
भी अपनी बेटी को अच्छे-बुरे की न सीख दी और न खाना पकाकर खिलाया । उनका अधिकांश
समय अध्ययन अथवा संगीत को समर्पित था। वे कभी झूठ नहीं बोलती थीं और न कभी इधर
की बात उधर करती थीं । शायद यही कारण था कि हर काम में उनकी राय ली जाती थी और
सब कोई उसे सहर्ष स्वीकारता भी था।
(ख) लेखिका की दादी के घर में कुछ लोग जहाँ अंग्रेज़ियत के दीवाने थे,वहीं
कुछ लोग भारतीय नेताओं के मुरीद भी थे घर में बहुमति होने के बाद भी एकता का
बोलबाला था। घर में किसी प्रकार की संकीर्णता नहीं थी। सभी लोग अपनी -अपनी
स्वतंत्रता एवं निजता बनाए रख सकते थे। घर के बच्चों के पालन-पोषण में घर के
सभी लोग जिम्मेदार थे। कोई भी सदस्य अपने विचार किसी पर थोप नहीं सकता था। इस
प्रकार हम कह सकते हैं कि घर का माहौल अमन-चैन से भरपूर और सुखद था।
उत्तर
दादीजी एक सामान्य महिला थीं। उनके मन में लड़का - लड़की का भेद नहीं था। पीढ़ियों से परिवार में किसी कन्या का जन्म नहीं हुआ था। प्राय: सभी लोग लड़के की कामना करते थे । दादीजी को ये भेदभाव शायद चुभता होगा। परिवार में किसी कन्या का न होना , उनके मन को बेचैन करता होगा । शायद इन्हीं कारणों की वजह से परदादी ने पतोहू के लिए पहले बच्चे के रूप में लड़की पैदा होने की मन्नत क्यों माँगी।
उत्तर
इस पाठ से स्पष्ट है कि मनुष्य के पास सबसे प्रभावी अस्त्र है - अपना दृढ़ विशवास और सहज व्यवहार। यदि कोई सगा-संबंधी गलत राह पर हो तो उसे डराने-धमकाने, उपदेश देने या दबाव डालने की जगह सहजता से व्यवहार करना चाहिए। लेखिका की नानी ने भी यही किया। उन्हों ने अपने पति की अंग्रेज़-भक्ति का न तो मुखर विरोध किया, न समर्थन किया। वे जीवन भर अपने आदर्शों पर टिकी रहीं| परिणामस्वरूप अवसर आने पर वह मनवांछित कार्य कर सकीं।
लेखिका के माता ने चोर के साथ जो व्यवहार किया, वह तो सहजता का अनोखा उदाहरण है। उसने न तो चोर को पकड़ा, न पिटवाया, बल्कि उससे सेवा ली और अपना पुत्र बना लिया। उसके पकड़े जाने पर उसने उसे उपदेश भी नहीं दिया| उसने इतना ही कहा - अब तुम्हारी मर्जी - चाहे चोरी करो या खेती| उसकी इस सहज भावना से चोर का ह्रदय परिवर्तित हो गया| उसने सदा के लिए चोरी छोड़ दी और खेती को अपना लिया।
6. ‘शिक्षा बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है’-इस दिशा में लेखिका के प्रयासों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
शिक्षा बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है। लेखिका को यह बात तब पूरी तरह समझ में आ
गई , जब उनके दो बच्चे स्कूल में जाने लायक हो गए । लेखिका कर्नाटक के एक छोटे
कस्बे में रहती थी। उन्होंने वहाँ के कैथोलिक चर्च के विशप से एक स्कूल खोलने का
आग्रह किया। परंतु उन्होंने क्रिश्चियन बच्चों की संख्या कम होने की बात कहकर
स्कूल खोलने से मना कर दिया। लेखिका ने कहा कि गैर- क्रिश्चियन बच्चों को भी
शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है, परंतु विशप तैयार नहीं हुए । ऐसे में लेखिका
ने आगे बढ़ते हुए अपने दम पर एक ऐसा स्कूल खोलने का मन बना लिया जिसमें
अंग्रेज़ी,कन्नड़ और हिन्दी तीन भाषाएँ पढ़ाई जाएँगी। लोगों ने भी लेखिका का साथ
दिया और वे बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिलाने में सफल रहीं। 7. पाठ के आधार पर लिखिए कि जीवन में कैसे इंसानों को अधिक श्रद्धा भाव से देखा जाता है?
उत्तर
प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि जो लोग कभी झूठ नहीं बोलते और सच का साथ देते हैं । जो किसी की बात को इधर-उधर नहीं करते अर्थात् चुगलखोरी से दूर रहते हैं। जिनके इरादे मजबूत होते हैं,जो हीन भावना से ग्रसित नहीं होते तथा जिनका व्यक्तित्व सरल, सहज एवं पारदर्शी होता है, उन्हें पूरा समाज श्रद्धा भाव से देखता है।
8. ‘सच, अकेलेपन का मज़ा ही कुछ और है’-इस कथन के आधार पर लेखिका की बहन एवं लेखिका के व्यक्तित्व के बारे में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर
लेखिका व उनकी बहन एकांत प्रिय स्वभाव की थीं। लेखिका व उनकी बहन के व्यक्तित्व का सबसे खूबसूरत पहलू था - वे दोनों ही जिद्दी स्वभाव की थीं परन्तु इस जिद्द से वे हमेशा सही कार्य को ही अंजाम दिया करती थे। लेखिका कि जिद्द ने ही कर्नाटक में स्कूल खोलने के लिए प्रेरित किया था। वे दोनों स्वतंत्र विचारों वाले व्यक्तित्व की स्वामिनी थीं और इसी कारण जीवन में अपने उद्देश्यों को पाने में सदा आगे रही